पुणे: महाराष्ट्र में महापालिका चुनावों को लेकर राजनीतिक परिस्थितियाँ लगातार बदलती जा रही हैं और पुणे में एक बड़ा राजनीतिक मोड़ सामने आया है। हाल के दिनों में महायुती (भाजपा-शिवसेना-NCP) गठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे और सहयोग को लेकर जारी बातचीत ने राजनीतिक नाट्य को और गहरा कर दिया है।
राज्य भर के नगरपालिका चुनावों में जहां कोल्हापुर महानगरपालिका के लिए महायुती का फॉर्मूला तैयार हो चुका है, वहीं पुणे महानगरपालिके में इस गठबंधन को लेकर अलग दिशा देखने को मिल रही है। महापालिका चुनावों में भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी (अजित पवार गट) की महायुती के लिए चर्चा चल रही थी, लेकिन पुणे में सत्ताधारी दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर मतभेद पैदा हो गए हैं।
कौन-सी दिक्कत सामने आई है?
पुणे में महायुती का प्रयास जारी होने के बावजूद, भाजपा और शिंदे गुट के बीच जागा बंटवारे को लेकर तालमेल नहीं बैठ पा रहा है, जिससे महायुती गठबंधन के भीतर खींचतान महसूस की जा रही है। इस मुद्दे पर शिवसेना (शिंदे गुट) के कुछ नेताओं ने भाजप के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए नाराज़गी जताई है और सीटों के विभाजन की रणनीति पर आलोचना भी की है।
विशेष रूप से पुणे महापालिका चुनाव में शिंदे गुट के नेता रवींद्र धंगेकर ने भाजपा द्वारा दिए गए सीट-प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा कि ऐसे प्रस्ताव से न सिर्फ गठबंधन कमजोर होगा, बल्कि महापालिका में जीत की संभावनाएँ भी कम हो सकती हैं। उन्होंने भाजपा नेतृत्व को स्पष्ट संदेश देते हुए अपनी नाराज़गी व्यक्त की है और राजनीतिक समीकरणों में बदलाव के संकेत दिए हैं।
अजित पवार-शिंदे युती का संभावित प्रभाव
इस राजनीतिक माहौल में पुणे जैसे बड़े शहर में अजित पवार के नेतृत्व वाली NCP और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के बीच संभावना जताई जा रही है कि यदि महायुती के भीतर सीट बंटवारा समन्वय नहीं हो पाया, तो ये दोनों पक्ष स्वतंत्र रूप से युति या अलग रणनीति अपनाने का विकल्प तलाश सकते हैं। इससे न सिर्फ पुणे में चुनावी समीकरण बदल सकता है, बल्कि राज्य के अन्य हिस्सों में भी इसका असर देखने को मिल सकता है।
राजनीति विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में महायुती में सीट-प्रस्ताव और गठबंधन की रणनीति पर बड़ी बैठकों और चर्चाओं के बाद स्पष्टता आएगी। इस बीच, भाजपा-शिंदे-NCP के बीच राजनीतिक हलचल और मतभेदों ने पुणे में राजनीतिक टकराव की स्थिति पैदा कर दी है, जिससे मतदाताओं में भी उत्सुकता और सवाल दोनों बढ़े हैं।
