नागपुर: भंडारा जिले के रोहणा और इंदुरका गाँवों के किसानों की लगभग 545 हेक्टेयर ज़मीन को भंडारा थर्मल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने एक थर्मल पावर प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित किया था। हालाँकि, कंपनी ने वहाँ कोई प्रोजेक्ट शुरू नहीं किया, बल्कि ज़मीन को बैंक में गिरवी रखकर ऋण ले लिया। ऋण न चुकाने के कारण बैंक ने ज़मीन को नीलामी के लिए रखा। इस मामले में किसानों द्वारा मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में याचिका दायर करने के बाद, न्यायालय ने आरोपों में प्राथमिक तौर पर तथ्य होने का अवलोकन करते हुए स्थिति को यथावत बनाए रखने का आदेश दिया है।
रोहणा और इंदुरका के 88 किसानों द्वारा दायर रिट याचिका की सुनवाई न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति रजनीश व्यास की पीठ के समक्ष हुई। याचिका के अनुसार, उद्योग संचालनालय ने 15 जुलाई 2011 को भंडारा थर्मल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड को शर्तों सहित अनुमति दी थी। आदेश में यह स्पष्ट शर्त दर्ज थी कि यदि पाँच वर्षों में प्रोजेक्ट शुरू नहीं होता है, तो संबंधित ज़मीन मूल किसानों को मूल दर पर पुनः खरीद के लिए उपलब्ध कराई जाएगी।
हालाँकि, कंपनी ने प्रोजेक्ट शुरू किए बिना ही ज़मीन को आईडीबीआई बैंक में गिरवी रखकर ऋण ले लिया और बाद में ऋण न चुकाने के आधार पर ‘सरफेसी’ कानून के तहत पूरी ज़मीन को नीलामी के लिए रख दिया गया, जैसा कि किसानों ने गंभीर आरोप लगाया है।
संबंधित ज़मीन आज भी कृषि योग्य है और किसानों के पास ही इसका वास्तविक कब्ज़ा है। प्रोजेक्ट से संबंधित कोई निर्माण, पर्यावरणीय मंजूरी या बिजली परियोजना के लिए आवश्यक अनुमतियाँ प्राप्त नहीं की गई हैं। ऐसी स्थिति में बैंक द्वारा ज़मीन नीलाम करना और तीसरे पक्ष को बेचना सरकारी आदेश, भूमि कानून और किसानों की आजीविका के अधिकारों का उल्लंघन है, जैसा याचिका में तर्क दिया गया।
न्यायालय ने 2011 के आदेश में पुनर्खरीद की शर्त को दरकिनार किए जाने की बात प्रथमदृष्टया दिखाई देने का उल्लेख करते हुए, किसानों के कब्जे वाली ज़मीन के संबंध में स्थिति यथावत बनाए रखने का अंतरिम आदेश दिया तथा राज्य सरकार और भंडारा के जिलाधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब दर्ज करने का निर्देश दिया। याचिका पर अगली सुनवाई 22 दिसंबर को होगी। याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट एस. सान्याल, एडवोकेट कल्याणकुमार तथा राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट एन.एस. राव ने पक्ष रखा।
