विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट कहा कि भारत अपने वैश्विक साझेदार चुनने में पूरी तरह स्वतंत्र है और किसी भी देश को यह अधिकार नहीं कि वह भारत के दूसरे देशों से संबंधों पर veto लगाए।
एनडीटीवी के सीईओ राहुल कंवल से HT लीडरशिप समिट में बातचीत के दौरान जयशंकर ने कहा कि रूस के साथ भारत के रिश्ते दुनिया की राजनीतिक उठापटक के बीच भी सबसे स्थिर और लंबे समय से चले आ रहे हैं।
उनकी यह टिप्पणी हाल ही में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा की पृष्ठभूमि में आई, जिसे उन्होंने “रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित करने” का प्रयास बताया। क्या यह उच्च-स्तरीय रूसी यात्रा अमेरिका के साथ संबंधों को जटिल बनाती है? इस सवाल पर जयशंकर ने कहा कि पश्चिमी मीडिया से रूस के बारे में निष्पक्ष राय की उम्मीद करना व्यर्थ है।
उन्होंने कहा कि भारत के लिए जरूरी है कि वह दुनिया की प्रमुख शक्तियों के साथ सहयोग बनाए रखे और अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बरकरार रखे।
जयशंकर ने कहा, “पिछले 70-80 वर्षों में दुनिया ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन भारत-रूस का रिश्ता लगातार स्थिर रहा है। रूस के चीन या यूरोप के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव आए, हमारे भी कई देशों के साथ संबंध बदले, लेकिन भारतीय समाज में रूस के प्रति एक खास सम्मान आज भी दिखता है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को अपने हितों के लिए खड़ा होना चाहिए—कूटनीति का मतलब किसी और को खुश करना नहीं है।
अमेरिका के साथ संबंधों पर भी उन्होंने स्पष्ट कहा कि दोनों देशों के बीच संवाद की कोई कमी नहीं है और जल्द ही एक व्यापार समझौता संभव हो सकता है।
उन्होंने कहा, “व्यापार ही अमेरिका के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। हम उनसे उचित शर्तों पर बात करने को तैयार हैं। हमारे किसानों, मजदूरों और मध्यम वर्ग के हित सर्वोपरि हैं।”
विदेश नीति की प्रक्रिया समझाते हुए उन्होंने कहा कि हर मुद्दे पर पूरी तरह मनमाफिक परिणाम नहीं मिलते, लेकिन बातचीत और जुड़ाव से समाधान निकाले जा सकते हैं।
