व्लादिमीर पुतिन लगभग चार साल बाद गुरुवार को भारत पहुंचे। जब उन्होंने पिछली बार 2021 में भारत की धरती पर कदम रखा था, तब विश्व व्यवस्था काफी अलग थी। कोविड महामारी के कारण वह यात्रा सिर्फ पांच घंटे की थी, जिसमें पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक और सैन्य सहयोग पर चर्चा की थी और दोनों देशों के विशेष संबंधों की पुष्टि की थी।
उसके तीन महीने बाद रूस के यूक्रेन पर आक्रमण ने पुतिन को वैश्विक स्तर पर एक अलग-थलग नेता बना दिया। वहीं, डोनाल्ड ट्रम्प के दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति बनने और भारत पर लगाए गए कठोर आयात शुल्क ने अमेरिका-भारत संबंधों में खटास पैदा कर दी।
इस उथल-पुथल भरे वैश्विक माहौल में, पुतिन की भारत यात्रा का बड़ा राजनीतिक महत्व है। विश्लेषकों का कहना है कि यह यात्रा न सिर्फ दोनों देशों के टिकाऊ रिश्ते का प्रतीक है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि अमेरिकी दबाव से न तो रूस और न ही भारत डरेगा।
रूस के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह यात्रा?
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता पेट्र टोपीचकानोव के अनुसार, रूस के लिए इस यात्रा का सबसे बड़ा महत्व यही है कि यह हो रही है। यह संकेत देगी कि रूस फिर से अंतरराष्ट्रीय मंच पर सामान्य राजनयिक गतिविधियों में लौट रहा है और राजनीतिक अलगाव के खतरे से अब वह चिंतित नहीं है।
भारत की चुनौतियाँ और रणनीति
हडसन इंस्टीट्यूट की अपर्णा पांडे के मुताबिक, भारत आज एक जटिल भू-राजनीतिक माहौल से जूझ रहा है, जहाँ एक तरफ ‘अर्ध-अलगाववादी अमेरिका’ है, तो दूसरी तरफ ‘कमजोर रूस और बहुत शक्तिशाली चीन’। ऐसे में भारत के लिए संतुलन बनाना बेहद जरूरी है।
भारत और रूस के रिश्ते शीत युद्ध के दौरों से गहरे हैं और रूस आज भी भारत का सबसे बड़ा रक्षा सप्लायर है। पांडे कहती हैं कि चीन भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है और ऐतिहासिक रूप से भारत ने हमेशा रूस को चीन के खिलाफ ‘महाद्वीपीय संतुलनकारी’ के रूप में देखा है।
हालाँकि, मास्को और बीजिंग के बीच बढ़ती ‘बिना-सीमा साझेदारी’ ने भारत को चिंता में डाल दिया है। इसीलिए भारत रूस पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहा है। चार साल पहले तक भारत का 70% रक्षा सामान रूस से आता था, जो अब घटकर 40% से भी कम रह गया है। पांडे के अनुसार, भारत इस बैठक में संतुलन बनाने की कोशिश करेगा – इतना रक्षा सौदा करेगा कि रूस के साथ गठबंधन बना रहे, लेकिन इतना निर्भर भी न हो कि चीन के दबाव में रूस अगर आपूर्ति रोक दे तो भारत मुश्किल में पड़ जाए।
तेल और अर्थव्यवस्था का सवाल
अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के बावजूद भारत रूसी तेल खरीदता रहा है। हालाँकि, अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारतीय निजी कंपनियों ने रूसी तेल खरीदना कम कर दिया है। इसके जवाब में, भारत ने ट्रम्प को खुश करने के लिए अमेरिकी तेल और गैस आयात बढ़ाने पर सहमति जताई है। रूसी प्रेस सचिव दिमित्री पेस्कोव ने कहा है कि प्रतिबंधों से रूस के भारत को तेल निर्यात में केवल ‘मामूली और अल्पकालिक’ कमी आएगी और रूस के पास लंबे समय में इन प्रतिबंधों से बचने की तकनीक मौजूद है।
यूक्रेन मुद्दा
विश्लेषकों का मानना है कि मोदी-पुतिन वार्ता में यूक्रेन का मुद्दा सीमित होगा और भारत शांति की अपनी पुरानी अपील दोहराएगा। पांडे के अनुसार, भारत के पास न तो रूस और न ही यूक्रेन पर कोई ऐसा दबाव बनाने का लाभ है जिससे युद्ध रुक सके।
निष्कर्ष
अपर्णा पांडे कहती हैं कि हाल के वर्षों में मोदी और पुतिन के बीच दिखाई गई दोस्ती और आत्मीयता के बावजूद, यह रिश्ता ‘शुद्ध व्यावहारिक राजनीति’ पर आधारित है, जहाँ हर देश अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखता है। यह शिखर वार्ता इस बात का प्रमाण है कि बदलती वैश्विक व्यवस्था में भी रूस और भारत एक-दूसरे के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बने हुए हैं।
