एक नए रिपोर्ट के अनुसार, भारत का तेज़ी से बढ़ता स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र हर साल लगभग 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये की भारी क्षति झेल रहा है। यह नुकसान धोखाधड़ी, अनावश्यक खर्च और दुरुपयोग (FWA) के कारण हो रहा है। Boston Consulting Group (BCG) और Medi Assist द्वारा ‘रक्षा समिट 2025’ में जारी इस संयुक्त रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इतनी बड़ी वित्तीय लीकेज बीमा कंपनियों की लाभप्रदता को कमजोर कर सकती है, प्रीमियम बढ़ा सकती है, और लोगों के बीच बीमा प्रणाली पर भरोसा घटा सकती है।रीबिल्डिंग ट्रस्ट: कॉम्बैटिंग फ्रॉड, वेस्ट एंड एब्यूज़ इन इंडिया’s हेल्थ इंश्योरेंस इकोसिस्टम’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि FWA अब कभी-कभार होने वाली समस्या नहीं रह गई, बल्कि यह पूरे सिस्टम को प्रभावित करने वाली गंभीर चुनौती बन चुकी है, जो सेक्टर की दीर्घकालिक स्थिरता को खतरे में डालती है।
अध्ययन इस संकट को तेज़ी से फैलते बीमा बाज़ार की पृष्ठभूमि में रखकर देखता है।
2025 में स्वास्थ्य बीमा का ग्रॉस रिटन प्रीमियम 1.27 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गया है और अनुमान है कि 2030 तक यह दोगुना बढ़कर 2.6–3 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच सकता है, यानी 16–18% की वार्षिक वृद्धि दर।
इसी दौरान, पिछले पाँच वर्षों में हेल्थकेयर महंगाई 12–14% सालाना बनी रही है, जो सामान्य महंगाई दर से काफी अधिक है। कई उद्योग विशेषज्ञों ने बताया कि वास्तविक मेडिकल महंगाई इससे भी ज्यादा—लगभग 17–18%—हो सकती है।
इसका सीधा असर क्लेम अमाउंट पर पड़ा है। FY24 के दौरान औसत क्लेम साइज़ में लगभग 40% की बढ़ोतरी हुई है और यह बढ़कर करीब 32,000 रुपये तक पहुँच गया है। इससे बीमा कंपनियों पर वित्तीय दबाव बढ़ा है और धोखाधड़ी जैसी गतिविधियों के लिए संवेदनशीलता भी और अधिक हो गई है।रिपोर्ट के अनुसार, FWA अलग-अलग रूपों में दिखाई देता है—जैसे जानबूझकर की गई धोखाधड़ी जिसमें फर्जी अस्पताल में भर्ती दिखाना या नकली क्लेम बनाना शामिल है; वेस्ट जो संचालन संबंधी कमी-कमजोरियों से पैदा होता है; और एब्यूज़ जिसमें ऐसे बिलिंग तरीक़े अपनाए जाते हैं जो चिकित्सकीय या नैतिक मानकों का उल्लंघन करते हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अनबंडलिंग ऑफ प्रोसीजर—जहाँ अस्पताल एक ही उपचार को कई बिल योग्य हिस्सों में बांट कर दिखाते हैं—FWA का सबसे आम और जोखिमभरा रूप है। इसके बाद टैरिफ में गड़बड़ी और अनावश्यक रूप से बढ़ा-चढ़ाकर बिलिंग को दूसरा प्रमुख श्रेणी माना गया है। ऐसे तौर-तरीके स्वास्थ्य सेवाओं की लागत कृत्रिम रूप से बढ़ा देते हैं और इससे एक दुष्चक्र बनता है—प्रीमियम बढ़ते हैं, बीमा कवरेज कम होता है, और घरों को अपनी जेब से खर्च करने की मजबूरी बढ़ जाती है।
इन सबके वित्तीय परिणाम अत्यंत गंभीर हैं।रिपोर्ट के अनुसार, यदि FWA में 100 बेसिस पॉइंट की कमी लाई जाए तो बीमा क्षेत्र का रिटर्न ऑन इक्विटी 70–80 बेसिस पॉइंट तक बढ़ सकता है, और यदि इसमें 50% की कमी आ जाए तो मुनाफ़ा लगभग 35% तक बढ़ने की संभावना है।
इसके उलट, लगातार जारी लीकेज से बीमा कंपनियों के मार्जिन और कम हो रहे हैं, जिनमें से कई का मुनाफ़ा अभी भी सिंगल-डिजिट में ही है—हालाँकि इस क्षेत्र में 100% एफडीआई जैसी नीतियाँ लागू हैं।
जैसे-जैसे फर्जी क्लेम बढ़ते जा रहे हैं, कंपनियाँ जांच कड़ी कर रही हैं, जिसका असर यह होता है कि असली पॉलिसीधारकों को भी देरी और बार-बार की जांच से गुजरना पड़ता है।
भारत अभी भी मुख्य रूप से पब्लिक + आउट-ऑफ-पॉकेट मॉडल पर निर्भर है, जहाँ घरों को कुल स्वास्थ्य खर्च का लगभग 39% खुद वहन करना पड़ता है, जबकि बीमा का हिस्सा सिर्फ 13% है—हालाँकि यह धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
बीमा कंपनियों के अधिकारियों ने बताया कि FWA की जड़ें कई संरचनात्मक समस्याओं में छिपी हैं—जैसे बिखरे हुए डेटा सिस्टम, मैन्युअल और प्रतिक्रिया-आधारित ऑडिट, बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच असंगत प्रोत्साहन, तथा उपचार प्रोटोकॉल में मानकीकरण की कमी।
अस्पताल और बीमा कंपनियाँ अलग-अलग बिलिंग फॉर्मेट और उपचार मानकों का उपयोग करती हैं, जिससे ऐसी खामियाँ पैदा होती हैं जिनका फायदा उठाकर दुरुपयोग आसानी से फलता-फूलता है।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि धोखाधड़ी का जोखिम हर क्षेत्र में एक जैसा नहीं होता। संक्रामक रोगों से जुड़े क्लेम अधिक संवेदनशील पाए गए हैं, क्योंकि इनके लक्षण अस्पष्ट होते हैं और इनकी टेस्टिंग-आधारित बिलिंग अधिक होती है। इसके विपरीत, सर्जिकल प्रक्रियाएँ कम जोखिम वाली मानी गई हैं क्योंकि इनमें कड़ी डॉक्यूमेंटेशन की जरूरत होती है।
इस समस्या से निपटने के लिए रिपोर्ट ने तकनीक, कानून सुधार और बेहतर समन्वित कार्रवाई पर आधारित एक राष्ट्रीय रोडमैप सुझाया है।
इसमें रियल-टाइम फ्रॉड डिटेक्शन के लिए AI और जेनरेटिव AI का व्यापक उपयोग, ABDM और NHCX जैसे प्लेटफॉर्मों के जरिए स्वास्थ्य डेटा का एकीकरण, और एकीकृत एंड इंटरऑपरेबल क्लेम इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण शामिल है।
रिपोर्ट का मानना है कि भविष्यवाणी-आधारित एनालिटिक्स और स्वचालित वेरिफिकेशन सिस्टम को अस्पतालों के वर्कफ़्लो में शामिल कर भारत रिएक्टिव जांच से प्रोएक्टिव रोकथाम की दिशा में बढ़ सकता है।
उद्योग विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि इस बदलाव को मजबूती देने वाला एक बड़ा नियामकीय कदम है—IRDAI द्वारा जारी Insurance Fraud Monitoring Framework Guidelines 2025।
इनमें बीमा कंपनियों के लिए फ्रॉड मॉनिटरिंग कमेटी और स्वतंत्र मॉनिटरिंग यूनिट बनाना अनिवार्य किया गया है, साथ ही धोखाधड़ी की श्रेणियों का मानकीकरण और साझा इंटेलिजेंस नेटवर्क में भागीदारी भी सुनिश्चित की गई है। यह FWA के प्रति ज़ीरो-टॉलरेंस दृष्टिकोण को दर्शाता है।
हालाँकि विशेषज्ञों का कहना है कि तकनीक अकेले पर्याप्त नहीं होगी।
उनके अनुसार, “FWA को एक स्पष्ट, परिभाषित और दंडनीय अपराध के रूप में कानून में शामिल करना बेहद आवश्यक है। इससे जानबूझकर किए गए धोखाधड़ी मामलों पर दंड लागू किए जा सकेंगे, और साथ ही ईमानदारी को बढ़ावा देने वाले व्यवहार-आधारित प्रोत्साहन भी विकसित किए जा सकेंगे।”
