एक समय था जब हृदय रोग को सिर्फ बड़ों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब यह चिंता बच्चों में भी तेजी से बढ़ रही है। बाल रोग विशेषज्ञ इस खतरे की ओर इशारा करते हुए कह रहे हैं कि आधुनिक जीवनशैली, अस्वस्थ खान-पान और बढ़ता मानसिक तनाव इसकी प्रमुख वजहें हैं।
इस समस्या में मोटापा सबसे बड़ा दोषी उभरा है। बच्चों द्वारा शक्करयुक्त पेय, तले-भुने स्नैक्स, प्रोसेस्ड और फास्ट फूड के बढ़ते सेवन से शरीर में वसा का स्तर बढ़ रहा है। इससे न सिर्फ रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है बल्कि दिल पर भी अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इसके साथ ही, शारीरिक सक्रियता में भारी कमी ने समस्या को और गहरा दिया है। मोबाइल, टेलीविजन और वीडियो गेम्स में घंटों बिताने से खेलने-कूदने का समय लगभग खत्म-सा हो गया है, जिससे मोटापा और हृदय रोग का खतरा दोनों बढ़ रहे हैं।
इनके अलावा, आनुवांशिक कारण भी एक भूमिका निभाते हैं। जिन बच्चों के परिवार में उच्च कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप या हृदय संबंधी समस्याओं का इतिहास रहा है, उनमें इसके होने का जोखिम अधिक होता है। डॉक्टर माता-पिता को सलाह देते हैं कि ऐसे बच्चों पर विशेष ध्यान दें और जोखिमों का पता लगाने के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच करवाते रहें।
एक और चिंताजनक पहलू है मनोवैज्ञानिक तनाव। स्कूल का बोझिल सिलेबस, ट्यूशन का दबाव, खेलने के लिए समय की कमी और भारी स्कूल बैग तक बच्चों में तनाव पैदा कर रहे हैं। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि लगातार बना रहने वाला यह तनाव बचपन में ही उच्च रक्तचाप और हृदय जटिलताओं के खतरे को बढ़ा सकता है।
इस रुझान को रोकने के लिए रोकथाम सबसे जरूरी है। विशेषज्ञों की सलाह है कि बच्चों के आहार में ताजे फल, सब्जियों और दालों को शामिल करें, जबकि तले और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों को सीमित कर दें। दिल की सेहत के लिए रोजाना कम से कम 30-45 मिनट की बाहरी शारीरिक गतिविधि, जैसे खेलना, दौड़ना या टहलना, बेहद फायदेमंद है। साथ ही, माता-पिता को सलाह दी जाती है कि वे बच्चों पर अकादमिक दबाव न डालें और उनके भरपूर आराम और भावनात्मक समर्थन का ध्यान रखें।
बचपन में हृदय रोग के बढ़ते मामलों के मद्देनजर, विशेषज्ञ जागरूकता और समय रहते हस्तक्षेप को अत्यंत महत्वपूर्ण बता रहे हैं। एक स्वस्थ जीवनशैली और नियमित निगरानी के जरिए ही इस चिंताजनक रुझान को पलटा जा सकता है और आने वाली पीढ़ी के दिलों को स्वस्थ रखा जा सकता है।
