मॉस्को। रूस की एक न्यूरोटेक्नोलॉजी कंपनी ‘नेरी’ एक अभूतपूर्व प्रयोग कर रही है, जहाँ जीवित कबूतरों को ‘जैविक ड्रोन’ (बायोड्रोन) में बदला जा रहा है। कंपनी का दावा है कि इन पक्षियों के दिमाग में लगाई गई न्यूरोचिप की मदद से एक ऑपरेटर उनकी उड़ान को रिमोट से नियंत्रित कर सकता है, ठीक वैसे ही जैसे कोई सामान्य ड्रोन को।
कैसे काम करती है तकनीक?
नेरी के अनुसार, पक्षी की पीठ पर लगे स्टिमुलेटर से जुड़े इलेक्ट्रोड दिमाग के विशिष्ट हिस्सों को उत्तेजित करते हैं। इससे पक्षी में बाएँ या दाएँ मुड़ने की ‘इच्छा’ पैदा होती है और उसे नियंत्रित किया जा सकता है। सिस्टम में एक जीपीएस रिसीवर भी लगा है, जिससे ऑपरेटर पक्षी की लाइव लोकेशन ट्रैक कर सकते हैं। कंपनी का कहना है कि इस तकनीक से पक्षियों को प्रशिक्षण देना भी जरूरी नहीं है – सर्जरी के बाद किसी भी पक्षी को रिमोट से नियंत्रित किया जा सकता है।
क्यों पक्षी, ड्रोन नहीं?
कंपनी के संस्थापक अलेक्जेंडर पानोव के मुताबिक, ये ‘बायोड्रोन’ परंपरागत यांत्रिक ड्रोन के मुकाबले कई मायनों में बेहतर हैं:
- लंबी उड़ान और सीमा: चूंकि पक्षी एक सामान्य जीवन जीता है, इसलिए इसकी ऑपरेटिंग अवधि और रेंज यांत्रिक ड्रोन से कहीं अधिक हो सकती है। एक अनुमान के मुताबिक, एक पीजेएन-1 बायोड्रोन कबूतर एक दिन में 500 किमी तक उड़ सकता है।
- घने शहरी इलाकों के लिए आदर्श: पक्षी प्राकृतिक रूप से बाधाओं के बीच नेविगेट करने में माहिर होते हैं, जो उन्हें इमारतों से भरे शहरों में निगरानी के लिए परफेक्ट बनाता है।
- विविधता: कंपनी का लक्ष्य अलग-अलग पक्षियों का अलग-अलग कामों के लिए इस्तेमाल करना है। जैसे, कौओं से भारी सामान ढुलवाना, समुद्री गुलों से तटीय इलाकों पर नजर रखवाना और अल्बाट्रॉस से विशाल समुद्री क्षेत्रों की निगरानी करवाना।
चिंताएँ और विवाद
हालाँकि यह तकनीक क्रांतिकारी लगती है, लेकिन इससे जुड़े कई नैतिक और पशु कल्याण संबंधी सवाल भी उठ रहे हैं:
- कंपनी ने यह नहीं बताया है कि परीक्षण के दौरान कितने पक्षियों की मृत्यु हुई या उन्हें किस तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ा।
- सर्जिकल प्रक्रिया के परिणामों या पक्षियों पर दीर्घकालिक प्रभाव का कोई डेटा सार्वजनिक नहीं किया गया है।
- जानवरों के अधिकारों से जुड़े कार्यकर्ता इसे ‘क्रूर प्रयोग’ बता रहे हैं, जहाँ पक्षियों को एक जीवित रोबोट में तब्दील किया जा रहा है।
नेरी का दावा है कि यह परियोजना अंतिम चरण में है और जल्द ही इसे रिमोट मॉनिटरिंग के लिए तैनात किया जाएगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह तकनीक भविष्य में सेना या निगरानी तंत्र द्वारा अपनाई जाती है, और इस पर दुनिया भर में नैतिक बहस किस रूप में होती है।
