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चंडीगढ़ बिल विवाद पर गृह मंत्रालय की सफाई: ‘कोई अंतिम निर्णय नहीं, सिर्फ कानून बनाने की प्रक्रिया सरल करने का प्रयास’

चंडीगढ़ से जुड़ी राजनीतिक हलचल के बीच केंद्र सरकार ने रविवार को स्पष्ट किया कि आगामी शीतकालीन सत्र में चंडीगढ़ की “शासन व्यवस्था या प्रशासनिक ढांचे में बदलाव” लाने वाला कोई विधेयक लाने की उसकी मंशा नहीं है।

गृह मंत्रालय (MHA) की यह स्पष्टीकरण उस विवाद के बाद आया, जो संविधान के अनुच्छेद 240 के तहत चंडीगढ़ को उन केंद्रशासित प्रदेशों की श्रेणी में शामिल करने के प्रस्ताव को लेकर खड़ा हुआ था, जिनकी अपनी विधायिका नहीं है—जैसे अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली-दमन एवं दीव और पुडुचेरी—विशेषकर तब जब किसी केंद्रशासित प्रदेश की विधान सभा भंग या निलंबित हो।

21 नवंबर को जारी लोकसभा बुलेटिन के अनुसार, संविधान (131वां संशोधन) विधेयक 2025 उन 10 नए विधेयकों में शामिल था, जिन पर आगामी सत्र में चर्चा होने की संभावना जताई गई थी। इसके अलावा, दो अन्य विधेयकों पर चयन समिति की रिपोर्ट के बाद आगे की कार्यवाही प्रस्तावित थी।

बढ़ती चिंताओं के बीच गृह मंत्रालय ने कहा कि यह प्रस्ताव “सिर्फ चंडीगढ़ के लिए केंद्र सरकार की कानून निर्माण प्रक्रिया को सरल बनाने” हेतु विचाराधीन है और किसी भी तरह से चंडीगढ़ की वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था में बदलाव का उद्देश्य नहीं रखता।

मंत्रालय ने X पर पोस्ट करते हुए कहा, “चंडीगढ़ के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया को सरल करने संबंधी प्रस्ताव अभी विचाराधीन है। इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।” पोस्ट में यह भी जोड़ा गया कि यह प्रस्ताव न तो चंडीगढ़ की मौजूदा प्रशासनिक प्रणाली में बदलाव करना चाहता है, न ही पंजाब और हरियाणा के साथ इसकी पारंपरिक व्यवस्थाओं को प्रभावित करेगा। मंत्रालय ने आश्वस्त किया कि किसी भी निर्णय से पहले सभी संबंधित पक्षों से व्यापक परामर्श किया जाएगा।

गृह मंत्रालय ने जनता से अनावश्यक चिंता न करने की अपील करते हुए कहा कि केंद्र सरकार आगामी शीतकालीन सत्र में इस संबंध में कोई विधेयक लाने की योजना नहीं रखती।


राजनीतिक विवाद क्या है?

अनुच्छेद 240 राष्ट्रपति को कुछ केंद्रशासित प्रदेशों के लिए “शांति, प्रगति और सुशासन” सुनिश्चित करने हेतु विनियम (Regulations) बनाने का अधिकार देता है। यदि किसी केंद्रशासित प्रदेश की विधान सभा भंग या निलंबित हो जाती है, तो उस अवधि में राष्ट्रपति को शासन से जुड़े विनियम बनाने का विशेष अधिकार मिल जाता है।

प्रस्ताव सामने आने के बाद पंजाब की राजनीति में तेजी से विरोध शुरू हो गया।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने इसे “पंजाब के हितों के खिलाफ” बताया।
पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने आशंका जताई कि यदि यह संशोधन पारित हुआ, तो इसका “गंभीर प्रभाव पंजाब पर पड़ेगा” और चंडीगढ़ को पंजाब से अलग करने की दिशा में एक कदम माना जाएगा।

शिअद प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने भी इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह पंजाब के हितों के विपरीत है और केंद्र सरकार पंजाब को चंडीगढ़ सौंपने के अपने पुराने वादों से पीछे हट रही है।

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