आरबीआई उप-गवर्नर पूनम गुप्ता ने कहा कि भारत की सांख्यिकीय प्रणाली को तेजी से बदलती अर्थव्यवस्था के साथ तालमेल बैठाना होगा। उन्होंने GDP, CPI और IIP के आगामी बेस रिविज़न को नीतिनिर्माण के लिए “मूलभूत रूप से महत्वपूर्ण” बताया।
मुंबई में आयोजित उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के बेस रिविज़न पर एक परामर्श कार्यशाला में गुप्ता ने कहा कि यह अद्यतन सिर्फ तकनीकी प्रक्रिया नहीं है, बल्कि नीति निर्माण की सटीकता सुनिश्चित करने में इसकी निर्णायक भूमिका है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि देश की खपत और उत्पादन की टोकरी तेजी से बदल रही है, इसलिए सांख्यिकीय ढांचे को भी उसी गति से विकसित होना चाहिए।
गुप्ता ने कहा कि भारत की सांख्यिकीय प्रणाली पेशेवर पारदर्शिता और मजबूत पद्धति की परंपरा पर आधारित है, लेकिन इसे अब तेज आर्थिक बदलावों के अनुरूप सशक्त बनाना आवश्यक है।
आरबीआई की बढ़ती डेटा ज़िम्मेदारियों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने बताया कि ‘डेटाबेस ऑन इंडियन इकोनॉमी’ (DBIE) में अब 2,000 से अधिक सांख्यिकीय टेबल और 20,000 से ज्यादा डेटा सीरीज़ उपलब्ध हैं। बैंक बड़ी मात्रा में आर्थिक व वित्तीय आंकड़े संकलित और जारी करता है, जिनमें ऐसे सर्वे भी शामिल हैं जो अर्थव्यवस्था में बदलाव के शुरुआती संकेत देते हैं।
गुप्ता ने कहा कि आरबीआई डेटा प्रकाशन चक्र में भी तेजी ला रहा है — त्रैमासिक भुगतान संतुलन (BoP) डेटा जारी करने का समय अंतर 90 दिनों से घटाकर लगभग 60 दिन कर दिया गया है और लक्ष्य इसे 40 दिनों के भीतर लाने का है।
उन्होंने बताया कि एंटरप्राइज़ सर्वे की व्यापक समीक्षा चल रही है और घरेलू सर्वेक्षणों का भी पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है ताकि ‘अनुमानित और वास्तविक मुद्रास्फीति’ के बीच अंतर को बेहतर तरीके से समझा जा सके।
मुद्रास्फीति के पूर्वानुमानों पर उन्होंने कहा कि पूर्वानुमान त्रुटियाँ वैश्विक स्तर पर सामान्य हैं, लेकिन एमपीसी द्वारा उपयोग किए जाने वाले अनुमानों में “कोई पक्षपात नहीं” है।
गुप्ता ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने लचीलापन और तेज़ी दोनों का प्रदर्शन किया है, और आरबीआई अपनी सांख्यिकीय प्रणालियों को लगातार उन्नत करता रहेगा ताकि नीतिगत निर्णयों के लिए उच्च-गुणवत्ता वाला समयबद्ध डेटा उपलब्ध हो सके।
